मैं कौन हूँ? (20 – 21)
रमण महर्षि के उपदेश
ॐ नमो भगवते श्रीरमणाय
मैं कौन हूँ?
20. क्या ईश्वर या गुरु किसी जीव को मुक्ति नहीं दे सकते?
ईश्वर या गुरु केवल मुक्ति का मार्ग दिखाएँगे, वे स्वयं जीव को मुक्ति की अवस्था तक नहीं ले जा सकते।
वास्तव में ईश्वर एवं गुरु भिन्न नहीं हैं। जिस प्रकार बाघ के जबड़े में आया शिकार बाहर नहीं निकल पाता, उसी प्रकार जो गुरु की कृपादृष्टि की परिधि में आ गए हैं, वे नष्ट नहीं होंगे बल्कि गुरु द्वारा रक्षित होंगे; तथापि हर किसी को ईश्वर या गुरु द्वारा दर्शाए गए मार्ग पर स्वयं प्रयत्न करना एवं मुक्ति प्राप्त करना चाहिए। स्वयं को, स्वयं के ज्ञानचक्षु द्वारा जानना है, कोई किसी दूसरे के चक्षु द्वारा कैसे जान सकता है? क्या राम को यह जानने के लिए कि वह राम है, एक दर्पण की आवश्यकता होगी?
21. मुक्ति की इच्छा रखनेवाले को क्या तत्त्वों का अन्वेषण करना आवश्यक है?
जिस प्रकार कोई कूड़े को फेंकना चाहे, तो उसे उसका विश्लेषण करने या यह देखने की आवश्यकता नहीं होती कि वह क्या है, उसी प्रकार जो अपना ‘स्वरूप’ जानना चाहे, तो उसे ‘स्वरूप’ को ढंकने वाले तत्त्वों को निरस्त करने के स्थान पर उनकी संख्या गिनने या उनकी विशेषताएँ जानने की आवश्यकता नहीं है। संसार को स्वप्न जैसा ही मानना चाहिए।